Tuesday, September 23, 2014

काश कि.....

काश की वो लम्हा ही न आता , जब तुम मुझसे मिली थी
रंगीन था ये मौसम और धरती भी खिली खिली थी |
                                       फिर तुम मिल गयी, बहार मिल गयी
                                       और जीने की मुझे नयी राह मिल गयी |
दिन बदल गए रातें भी बदल गयी,
सोचने का तरीका और बाते भी बदल गयीं |
                                        तारे भी मुस्कराने लगे थे और चाँद भी हंसने लगा था,
                                        रात में अकेले में कुछ बातें वो मुझसे कहने लगा था |
आते जाते हमेशा चाँद मुझे चिढाने लगा था,
रह-रह कर खुद में ही वो मुझे तस्वीर तेरी दिखाने लगा था |
दिन में भी अकेले में ख्याल तेरे आने लगे थे,
और मन भी अब यूँ ही बिना बात के गुनगुनाने लगा था |
                                        तुम मिल गयी मैं बदल गया,
                                        ज़िन्दगी बदल गयी जीने का तरीका बदल गया |
                                        तुम्हारी हंसी में मेरी ख़ुशी और तुम्हारे आंसुओ में मेरा गम था,
                                        जब तुम मिल गयी तो लगा कि ज़िन्दगी में अब कुछ भी न कम था |
जीने की नयी राह दिखा कर तुमने जीने का तरीका सिखा दिया,
कितने रंग थे इस ज़िन्दगी में तुमने सपनो का इन्द्रधनुष दिखा दिया |


फिर एक दिन अचानक तुम मुझसे दूर हो गयी,
दिल में थी बहुत सी उम्मीदे सारी चकनाचूर हो गयी |

ये मौसम भी गुजर गया बहारें भी सो गयी,
ज़िन्दगी में थी जो खूबसूरत राहें वो भी कही खो गयी |
                                        दिन भी अकेले हो गए रात भी गुमनाम हो गयी,
                                        अब तो ऐसे लगने लगा जैसे ज़िन्दगी की शाम हो गयी |
अब तो तारे भी खो गए थे और चाँद भी सो गया,
अचानक ही मेरी ज़िन्दगी को ये क्या हो गया |
   अब तो न तारे ही कुछ कहते है
न ही तो चाँद कुछ बताता है
लेकिन हाँ, आज भी वो खुद में,
मुझे तेरी ही तस्वीर दिखाता है ||